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तू इतना क्यूं इतरावै ?

तू इतना क्यूं इतरावे ?

बात समझ नहीं आवै ।

रोता आया जग में तू....

सबको रोता छोड़ जावै ।

अच्छी करनी कर शुरू, मत दूसरों को सतावे ।

पैसा गाड़ी कोठी बंगले,

कोई तेरे साथ न जावे।

व्यवहार बना तू अपना

चार लोग ही तुझे उठावें ।

सफर करले चाहे गाड़ी में, अंत में अर्थी ही काम आवै।

गिन गिन रखे हैं करोड़ों, उस वक्त कफन ही पहनावें।

जिनके बीच तू आया,

अंत समय वही ना रख पायें। कैसी रीत चली आई?

धन दौलत जायदाद गहने छोड़,

तेरी किसी चीज से हाथ ना लगावें।

अरे मानव! अपना अंत समय सुधार,

जिससे तुझे मोक्ष मिल जावै। -पं० चंद्र दत्त शर्मा

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